एक-एक विधायक पर नजर – यूपी राज्यसभा चुनाव में 10वीं सीट पर सबसे बड़ा सस्पेंस

यूपी राज्यसभा चुनाव
लखनऊ : राज्यसभा की 59 सीटों के लिए 23 मार्च को होने जा रहे मतदान ने एक बार फिर देश के सियासी पारे को ऊपर उठा दिया है। इसमें सबसे ज्यादा रोचक और दम साधने वाला चुनाव यूपी में होने जा रहा है। यूपी से इस बार कुल 10 उम्मीदवार राज्यसभा पहुंचने वाले हैं। इसमें से 8 सीटों पर बीजेपी की जबकि एक पर समाजवादी पार्टी की जीत पक्की है। यूपी की 10वीं सीट पर सबसे बड़ा सस्पेंस बना हुआ है। इस सीट पर एसपी-कांग्रेस जहां बीएसपी को जिताने में जुटी हैं, वहीं बीजेपी ने भी 9वां कैंडिडेट दे रखा है। बुधवार रात लखनऊ में अखिलेश जहां डिनर पार्टी में अपने संख्याबल की पैमाइश कर चुके हैं तो योगी भी आवास पर सहयोगियों की बैठक ले चुके हैं। अब मामला सेट है और सबको कल की वोटिंग के बाद नतीजों का इंतजार है।
दरअसल यूपी की 10वीं सीट पर बीएसपी उम्मीदवार भीमराव आंबेडकर और बीजेपी के अनिल अग्रवाल के बीच मुकाबला है। लोकसभा उपचुनाव में दो सीट गंवा चुकी बीजेपी हर हाल में इस सीट को जीतना चाहती थी। वहीं, एसपी-बीएसपी-कांग्रेस का पूरा जोर बीएसपी कैंडिडेट को जिताने पर है। एक-एक विधायक पर नजर बनी हुई है और संख्याबल पाने के लिए डिनर और जोड़-तोड़-गठजोड़ पॉलिटिक्स जैसे हरसंभव कदम उठाए जा रहे हैं।
नरेश अग्रवाल के बीजेपी में शामिल होने से बिगड़ा खेल 
10वीं सीट के लिए यह चुनाव इतना फंसा हुआ नहीं होता अगर नरेश अग्रवाल ने पाला नहीं बदला होता। दरअसल यूपी में राज्यसभा चुनावों की गणित के मुताबिक एक कैंडिडेट को जीत के लिए 37 विधायकों के मतों की जरूरत है। बीजेपी के पास 311 और सहयोगियों अपना दल एस (9) व सुभासभा (4) को मिलाकर एनडीए के कुल 324 विधायक हो रहे हैं। वहीं एसपी के पास 47, बीएसपी के 19, कांग्रेस के 7, आरएलडी के 1, निषाद के 3 और निर्दलीय तीन विधायक हैं।
अगर सहयोगी बीजेपी के साथ रहे आठ उम्मीदवारों को 37-37 वोट मिलने के बाद बीजेपी के पास 28 वोट बचे हैं। अपनी उम्मीदवार जया बच्चन को जिताने के बाद एसपी के पास 10 विधायक बचे हैं। इसमें बीएसपी के 19, कांग्रेस के 9 और आरएलडी के 1 विधायक को मिला दिया जाए तो संख्या बल 37 पहुंच जाता है। ऐसी स्थिति में बीएसपी के कैंडिडेट भीमराव आंबेडकर को कोई दिक्कत नहीं होती है, लेकिन यहीं नरेश अग्रवाल फैक्टर राह का रोड़ा बन गया।
दरअसल नरेश अग्रवाल के बीजेपी में शामिल होने के बाद इस बात की आशंका तेज हो गई है कि एसपी से विधायक उनके बेटे नितिन अग्रवाल क्रॉस वोटिंग करेंगे। योगी आदित्यनाथ के आवास पर पहुंच नितिन इसके संकेत भी दे चुके हैं। ऐसे में एसपी का एक वोट खुद-ब-खुद कम नजर आ रहा है। उधर, बीजेपी का दावा है कि उसका 9वां कैंडिडेट भी प्रथम वरीयता के मतों से ही जीत जाएगा। हालांकि ऐसा होने के लिए बीजेपी को 9 विधायकों की जरूरत है।
अखिलेश की डिनर पार्टी में पहुंचे राजा भैया से बीएसपी को उम्मीद 
नितिन अग्रवाल के झटके के बीच एसपी-बीएसपी के लिए कुंडा से निर्दलीय विधायक राजा भैया उम्मीद की किरण बने हुए हैं। दरअसल बुधवार को अखिलेश यादव ने पांच सितारा होटल में डिनर का आयोजन किया। इसमें राजा भैया भी पहुंचे। इसके अलावा अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव भी मौजूद रहे। दिन में विधायक दल की बैठक से शिवपाल व कुछ विधायकों की गैरमौजूदगी से एसपी-बीएसपी की सांसें फूली हुईं थी जबकि बीजेपी खुश नजर आ रही थी।
शिवपाल रात में न केवल मौजूद रहे बल्कि यह भी दावा किया कि दोनों सीटों पर जीत मिलेगी। शिवपाल ने कहा कि जो इस पार्टी में नहीं आए हैं, उनका भी समर्थन मिलेगा, हम सब साथ हैं। ऐसे में अब एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव की बीएसपी प्रत्याशी को राज्यसभा भेजने की रणनीति फिलहाल सफल होती दिख रही है।
जेल में मुख्तार, वोटिंग की अनुमति देने के लिए हाई कोर्ट के दरवाजे पर बीएसपी 
10वीं सीट की यह लड़ाई अब इलाहाबाद हाई कोर्ट के लखनऊ बेंच तक भी पहुंच गई है। बुधवार को बीएसपी के महासचिव सतीश मिश्रा ने वोटिंग के लिए दो विधायकों मुख्तार अंसारी (बीएसपी) और हरीओम यादव (एसपी) को जेल से रिहा करने की मांग की है। योगी सरकार की तरफ से ऐडवोकेट जनरल राघवेंद्र सिंह ने मिश्रा की याचिका का विरोध किया है।
ऐडवोकेट जनरल ने तर्क दिया है कि जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 62(5) के मुताबिक पुलिस कस्टडी से किसी को वोटिंग में शामिल होने की अनुमति नहीं दी जा सकती। सतीश मिश्रा ने इसके जवाब में कोर्ट से कहा है कि ये दोनों विधायक पुलिस नहीं बल्कि न्यायिक हिरासत में हैं। पहले भी न्यायिक हिरासत में रहने वाले विधायकों को यूपी व अन्य राज्यों में वोटिंग की अनुमति दी गई है। इन दोनों विधायकों के वोट बीएसपी राज्यसभा कैंडिडेट के लिए काफी अहम हैं।

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